Thursday, June 23, 2005

संवेदनहीनता

मैं, इस बिखरती जिंदगी का एकमात्र मूकगवाह
सशक्त लेकिन शापित, सूचित लेकिन दिग्भ्रमित।
बेमेल प्रतिस्पर्धा है ज़िन्दगी से मेरी,
तार तार होते सपनों को फिर से बुनने का कार्यभार
सौंपा गया है मुझ पर।
लेकिन इस पूर्वनिर्धारित हार की चिंता
अब व्यथित नही करती अन्तर्मन को।
स्पंदन नही बचा अब किसी तन्तु में।
सुखदायी है संवेदनहीन होना,
कि अब रोज़ रोज़ मरना नही पडता।

1 Comments:

Blogger Unknown said...

स्वागत है आपकी हिन्दी लेखनी का।

6:37 AM  

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