स्वागत है तुम्हारा भी
आओ, हिचको मत।
यह अचरज विस्मय का चिन्ह है,
सुदृण कटुता नही, पुर्वाग्रह्जन्य है।
भय है, लौट आने का उन क्षणों का
जिनमे उन्मादित 'खुशी' ने हृदय को
सिर्फ अपनी जन्मभूमि माना था,
और तुमने उसे अपना सहोदर बताया था।
आओ शामिल हो जाओ अपने तत्वों के साथ
इसके विजयगान मे, जो कल तुम्हारे लिए होगा,
और आयाम दो वास्तविकता को मिलकर।
शायद उसे यह आभास हो रहा है
कि इस हृदयपटल पर तुम्हारा भी बराबर का हक है,
और उसकी महत्ता पहचान खो देगी
तुम्हारी अनुपस्थिती मे।
देखो उसके अधखुले अधरों मे शब्द दबे हैं,
'स्वागत है तुम्हारा भी'।
यह अचरज विस्मय का चिन्ह है,
सुदृण कटुता नही, पुर्वाग्रह्जन्य है।
भय है, लौट आने का उन क्षणों का
जिनमे उन्मादित 'खुशी' ने हृदय को
सिर्फ अपनी जन्मभूमि माना था,
और तुमने उसे अपना सहोदर बताया था।
आओ शामिल हो जाओ अपने तत्वों के साथ
इसके विजयगान मे, जो कल तुम्हारे लिए होगा,
और आयाम दो वास्तविकता को मिलकर।
शायद उसे यह आभास हो रहा है
कि इस हृदयपटल पर तुम्हारा भी बराबर का हक है,
और उसकी महत्ता पहचान खो देगी
तुम्हारी अनुपस्थिती मे।
देखो उसके अधखुले अधरों मे शब्द दबे हैं,
'स्वागत है तुम्हारा भी'।
1 Comments:
बहुत भावप्रधान कविता है । हिन्दी चिट्ठाजगत मे आपका हार्दिक स्वागत है ।
अनुनाद
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